कक्षा 10 वीं, पाठ-1 बड़े भाई साहब

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कक्षा 10 हिंदी ‘ब’ स्पर्श (गद्य खंड)
पाठ- 1 बड़े भाई साहब
महत्त्वपूर्ण प्रश्नोंत्तर


गद्य-पाठों के विषय-बोध पर आधारित प्रश्नोत्तर

  1. दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई के व्यवहार में क्या परिवर्तन आया?
    उत्तर-
     दूसरी बार पास होने पर छोटा भाई अपने बड़े भाई की सहनशीलता का अनुचित लाभ उठाने लगा। वह पहले से अधिक स्वच्छंद हो गया। वह अपना अधिक समय खेल-कूद में ही लगाने लगा। छोटा भाई बड़े भाई के उपदेशों पर ध्यान नहीं देता था।


  2. बड़े भाई साहब को अपने मन की इच्छाएँ क्यों दबानी पड़ती थीं?
    उत्तर-
     बड़े भाई साहब को अपने मन की इच्छाएँ दबानी पड़ती थीं क्योंकि वे कभी मेले-तमाशों में नहीं जाते थे। वे हॉकी-क्रिकेट मैचों के पास तक नहीं फटकते थे। बस हर समय पढ़ाई करते रहते थे। इसके बावजूद भी एक-एक कक्षा कई-कई साल में पास करते थे। वे मजबूत नींव बनाने में विश्वास करते थे। उन्हें अपनी पोजीशन और कर्तव्य का भी ध्यान रहता था। वो कहते थे – ‘मेरा जी भी ललचाता है, लेकिन क्या करूँ, खुद बेराह चलूँ तो तुम्हारी रक्षा कैसे करूँ? कर्तव्य भी मेरे सिर है।”


  3. बड़े भाई साहब छोटे भाई को क्या सलाह देते थे और क्यों?
    उत्तर-
     बड़े भाई साहब छोटे भाई को दिन-रात पढ़ने की सलाह देते थे। उनकी इच्छा थी कि जिस प्रकार वे हर समय पढ़ते रहते हैं, उसी प्रकार उनका छोटा भाई भी अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगाए। उन्हें अपने छोटे भाई का खेलना और इधर-उधर घूमना अच्छा नहीं लगता था। बड़े भाई साहब चाहते थे कि उनका छोटा भाई पढ़-लिखकर विद्वान बने।


  4. इम्तिहान पास कर लेना कोई चीज़ नहीं है, असल चीज़ है बुद्धि विकास। आशय स्पष्ट कीजिए।
    उत्तर- बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई को समझाते हैं कि परीक्षा में पास होना कोई बड़ी बात नहीं है। बड़ी बात तो बुद्धि का विकास करना है। यदि कोई व्यक्ति अनेक परीक्षाएँ पास कर ले किंतु उसे अच्छे-बुरे में अंतर करना न आए तो उसकी पढाई व्यर्थ है। पुस्तकों को पढ़कर उसके ज्ञान से अपनी बुद्धि का विकास करना ही असली शिक्षा है।


  5. बड़े भाई साहब अंग्रेज़ी के बारे में क्या नसीहत देते रहते थे?
    उत्तर- 
    बड़े भाई साहब अंग्रेज़ी के बारे में छोटे भाई को यह नसीहत देते रहते थे कि अंग्रेज़ी पढ़ना कोई हँसी-खेल नहीं है। उसे पढ़ने के लिए रात-दिन आँखें फोड़नी पड़ती हैं और खून जलाना पड़ता है। ऐरा-गैरा नत्थू खैरा अंग्रेज़ी नहीं पढ़ सकता। बड़े-बड़े विद्वान भी शुद्ध अंग्रेज़ी नहीं लिख पाते, बोलना तो दूर। अंग्रेज़ी पढ़ने-समझने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है। वे अपना उदाहरण भी देते हैं।


  6. लेखक के अनुसार बड़े भाई की रचनाओं को समझना छोटा मुँह बड़ी बात थी। कैसे?
    उत्तर- 
    छोटे भाई का कथन है कि बड़े भाई साहब स्वभाव से बड़े अध्ययनशील थे। हरदम किताब खोले बैठे रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कॉपी पर, किताब के हाशियों पर चिड़ियों, कुत्तों बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे। कभी-कभी एक ही नाम या शब्द या वाक्ये दस-बीस बार लिख डालते। कभी एक शेर को बार-बार सुंदर अक्षर में लिखते। कभी ऐसी शब्द-रचना करते, जिसमें न कोई अर्थ होता, न कोई सामंजस्य। मसलन एक बार उनकी कॉपी पर मैंने यह इबारत देखी – स्पेशल, अमीना, भाइयों-भाइयों, दरअसल. भाई-भाई। राधेश्याम, श्रीयुत राधेश्याम, एक घंटे तक – इसके बाद एक आदमी का चेहरा बना हुआ था। मैंने बहुत चेष्टा कि इस पहली का कोई अर्थ निकालूँ, लेकिन असफल रहा और उनसे पूछने का साहस न हुआ। वह नौवीं जमात में थे, मैं पाँचवीं में। उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह बड़ी बात थी।


  7. छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा क्यों उत्पन्न हुई?
    उत्तर-
    एक दिन जब वह एक पतंग के पीछे दौड़ रहा था तो बड़े भाई साहब ने उसे पकड़ लिया। उन्होंने उसे बुरी तरह फटकारा। उनके द्वारा दिए गए तर्क और उदाहरण इतने सटीक थे कि छोटा भाई हैरान रह गया। बड़े भाई साहब ने उसे बताया कि केवल किताबी ज्ञान पा लेने से कोई महान् नहीं बन जाता बल्कि जीवन की समझ तो अनुभव से आती है। बड़े भाई साहब छोटे भाई को बड़े ही सुंदर ढंग से समझाते है कि पढ़-लिखकर पास होना और जीवन की समझ होना दोनों अलग-अलग बातें हैं। चाहे परीक्षा में पास न हुए हों किंतु उनके पास जीवन अनुभव अधिक है। परीक्षा में केवल पास होना ही बड़ी बात नहीं है। अपितु जीवन में अच्छे-बुरे समय में अपने आपको उसके अनुसार ढाल लेना बड़ी बात है। बड़े भाई साहब उसे अपने माता-पिता और हेडमास्टर साहब का उदाहरण देकर समझाते हैं कि जीवन में अनुभव की अधिक आवश्यकता है और उनके पास उससे कहीं ज्यादा अनुभव है। बड़े भाई साहब की ऐसी विद्वतापूर्ण बातों को सुनकर छोटे भाई के मन में उनके प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई थी।

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