कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि।
कहत लखन सन राम हृदय गुनि।
मानहु मदन दुंदुभी दीन्ही।
मनसा बिस्व बिनय कहॅ कीन्ही।।
कंकण हाथ का आभूषण है, किंकिनी कमर का, और नूपुर पैर का। तीन अंगों के आभूषण क्रम से शरीर के, ऊपर के, मध्य के, और नीचे स्थान के हैं। वे शब्द कर रहे हैं। इन्हीं तीनों का उपयोग विवाह के समय भी किया गया है।Kankan is the ornament of the hand, Kinkini of the waist, and Nupur of the feet. The ornaments of the three parts are respectively of the body, upper, middle, and lower. They are doing words. These three have also been used at the time of marriage. यथा
कंकन किंकिनी नूपुर बाजहिं।
चाल बिलोकि काम गज लाजहिं।।
कंकड़ से किंकिनी विशेष बजती है, और किंकिनी से नूपुर विशेष बजता है। अतः शब्द के क्रम से नाम लिखे गए हैं। नूपुर पैर का आभूषण है। पैर उठाकर रखने में नूपुर में विशेष शब्द होता है। तीनों को मिलाकर एक साथ ध्वनि हो रही है। उसे सुनकर दुंदुभी की ध्वनि के समान तुलना की जा रही है। डंके में भी तीन शब्द होते हैं। प्रथम दो बार *कुड़ुक-कुड़ुक,* धीमा शब्द होता है यह कंकण और किंकिणि का मधुर शब्द है, और तीसरा *धुम्म* जो गंभीर शब्द है वह नूपुर का है। सबसे पहले सीताजी के कंकण ने श्रीरामजी के हृदय में प्रविष्ट करके अपने स्वत्व (Existence) का बीज जमा दिया। फिर किकिनी और नूपुर के शब्द क्रमशः रामजी के हृदय में बैठ गये। इसीलिए लिखा है, *राम ह्रदय गुनि* रामजी का हृदय इन शब्दों पर विचार कर रहा है। कंकण यह बता रहा है कि संसार में कौन ऐसी शोभा वाला है जो इनके आगे *कंक* अर्थात *दरिद्र* नहीं है। किंकिणि से किन-किन जैसी ध्वनि निकलती है, अर्थात इनके सामने रमा, उमा, रति,आदि, किन-किन करके हार मान लेती हैं। नूपुर से छन-छन के बोल, सूचित कर रहे हैं कि रति आदि, इनके आगे, वापस भागने में जरा भी देर नहीं लगातीं। इनके सौंदर्य के आगे सब फीके हैं। इस तरह श्रीरामजी के हृदय में सीताजी के प्रति, प्रीति की उत्पत्ति हुई। आभूषण सीताजी के हैं। अलौकिक आभूषणों की ध्वनि से श्रीरामजी के हृदय में हलचल हुई। नारदजी की शब्द शक्ति से सीताजी के हृदय में पवित्र प्रेम की उत्पत्ति हुई है। रामजी में भी इसी शक्ति से यह प्रेम उत्पन्न हुआ। एक सखी जो पहले रामजी को देख आई थी, उसके आभूषणों की ध्वनि से ऐसा नहीं हुआ। कारण रामजी का शरीर और सीताजी के सब आभूषण, चिदानंदमय हैं। हृदय के आकर्षण में संस्कार, संकल्प, भावना, आदि का ही प्रभाव पड़ता है।Kinkini is specially played with pebbles, and Nupur is specially played with Kinkini. So the names are written in word order. Nupur is the ornament of the feet. There is a special word in Nupur for keeping the feet raised. Mixing all the three together, there is sound. Hearing it is being compared to the sound of Dundubhi. Stings also have three words. The first two times *Kuduk-Kuduk,* is a slow sound, it is the sweet sound of Kankan and Kinkini, and the third *Dhumm* which is a serious sound, is of Nupur. First of all, Sitaji’s Kankan inserted into the heart of Shri Ramji and deposited the seed of his existence. Then the words of Kikini and Nupur respectively sat in Ramji’s heart. That is why it is written, *Ram Hridaya Guni* Ramji’s heart is contemplating these words. Kankan is telling who is such a beauty in the world who is not *kank* i.e. *poor* in front of him. Kinkini emits sound like ‘kinkin’, which means Rama, Uma, Rati, etc. accept defeat in front of them. The words of Chan-Chan from Nupur, are informing that Rati etc., in front of them, do not take any time to run back. Everything pales in front of her beauty. In this way love for Sita was born in the heart of Shri Ram. The ornaments belong to Sitaji. Shriram’s heart was stirred by the sound of supernatural ornaments. Pure love has originated in Sitaji’s heart by the word power of Naradji. This love was born in Ramji also from this power. A friend who had come to see Ramji earlier, this did not happen due to the sound of her jewellery. Because Ramji’s body and all the ornaments of Sitaji are Chidanandmay. Sanskar, thoughts, feelings, etc. only have an effect on the attraction of the heart. यथा-
सुमिरि सीय नारद बचन उपजी प्रीति पुनीत।
चकित बिलोकति सकल दिसि जनु सिसु मृगी सभीत।।
इसीलिए सीताजी का रामजी में मन लगा। मृगी की उत्प्रेक्षा प्रीति की पवित्रता और नेत्रों को इधर-उधर आतुरता से घुमाने से की गई है। सीताजी के मन में पति-भाव से प्रेम उपजा। इस प्रेम में काम विकार का लेश मात्र भी नहीं है। यह प्रेम अत्यंत पवित्र है। यहां हमें उपदेश मिलता है, कि उपासना को इसी तरह गुप्त रखना चाहिए। चतुर लोग अनुमान से यह जान लेते हैं। श्रीरामजी अपने हृदय के भाव लक्ष्मण जी से कहते हैं क्योंकि लक्ष्मण जी काम के विजेता हैं। मेघनाथ ने इंद्र को जीता था। That’s why Sitaji’s mind was in Ramji. Epilepsy is derived from the purity of love and the eager rolling of the eyes here and there. Sitaji’s heart developed love for her husband. There is not even a trace of lust in this love. This love is very pure. Here we get the exhortation that worship should be kept secret like this. Clever people know this by guesswork. Shriramji tells the feelings of his heart to Lakshman ji because Lakshman ji is the winner of work. Meghnath had won over Indra.यथा
*पाकारिजित काम विश्रामहारी* और लक्ष्मणजी ने मेघनाथ को जीता। अतः काम, लक्ष्मणजी के निकट आ ही नहीं सकता। यथा- And Laxmanji won Meghnath. That’s why work cannot come near Laxmanji. as-
देखि गयउ भ्राता सहित तासु दूत सुनि बात।
डेरा कीन्हेउ मनहुॅ तब कटकु हटकि मनजात।।
लक्ष्मण जी ने आभूषणों की ध्वनि पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। उन्होंने न किसी स्त्री की ओर देखा, न श्रंगार की कोई बात की। यही भावना काम को जीतना है। लक्ष्मणजी वीर हैं। वीर की चढ़ाई वीर से ही कहनी चाहिए। जिसमें वह सावधान हो जाए। इसीलिए लक्ष्मणजी से कहा। बिना कहे रहा भी नहीं गया। कहकर रामजी लक्ष्मणजी को सचेत कर रहे हैं, कि अब सावधान हो जाओ। हमारा मन इनमें लग गया है। आपत्ति में भाई ही सहायता करता है। इसीलिए लक्ष्मणजी से कहा। काम का परम बल नारी है। यथा- Lakshman ji did not pay any attention to the sound of the ornaments. He neither looked at any woman, nor did he talk about adornment. This feeling is to conquer the work. Laxmanji is brave. The ascent of the heroic should be told to the heroic only. In which he should be careful. That’s why said to Laxmanji. Didn’t even go without saying. Ramji is warning Laxmanji by saying that now be careful. Our mind is engrossed in them. Only brother helps in objection. That’s why said to Laxmanji. Woman is the ultimate force of work. as-Lakshman ji did not pay any attention to the sound of the ornaments. He neither looked at any woman, nor did he talk about adornment. This feeling is to conquer the work. Laxmanji is brave. The ascent of the heroic should be told to the heroic only. In which he should be careful. That’s why said to Laxmanji. Didn’t even go without saying. Ramji is warning Laxmanji by saying that now be careful. Our mind is engrossed in them. Only brother helps in objection. That’s why said to Laxmanji. Woman is the ultimate force of work. as-
एहि कै एक परम प्रिय नारी।
तेहि ते उबर सुभट सोइ सो भारी।।
इसीसे सीताजी के आभूषणों के शब्द को काम का नगाड़ा कहा गया है। कामदेव ने विश्व विजय के उद्देश्य से श्रीरामजी पर आक्रमण किया है। श्रीराम विश्वरूप है। यथाThis is why the word of Sitaji’s ornaments has been called the drum of work. Kamdev has attacked Shriramji with the aim of world victory. Shri Ram is the universal form. as
विश्वरूप रघुवंश मनि करहु बचन बिश्वास।
लोक कल्पना वेद कर अंग अंग प्रति जासु।
ये मंदोदरी के वचन हैं। कामदेव जानकीजी का बल पाकर अत्यंत प्रबल हो गया है। इसीलिए आज उसको जीतने वाला तीनों लोकों में कोई नहीं है। कल नगर दर्शन में नगर की स्त्रियों ने श्रीराम-लक्ष्मण के रूप सौन्दर्य को देखा और उन पर आसक्त हो गईं थीं। परंतु श्रीरामजी ने किसी की भी तरफ दृष्टि नहीं डाली थी। वहां पर कामदेव की हार हुई थी। जिसका बदला वह आज पुष्प-वाटिका में निकालना चाहता है। इस तरह पहले दिन कामदेव को सफलता नहीं मिली थी। इसका तात्पर्य है, मुनि के साथ ये ब्रह्मचर्य ब्रत धारण किए हुए थे। अब मौका है। अतः These are the words of Mandodari. Kamdev has become very strong after getting the strength of Janakiji. That’s why today there is no one in all the three worlds to conquer him. Yesterday in the city darshan, the women of the city saw the beauty of Shri Ram-Laxman and fell in love with them. But Shriramji did not look at anyone. Cupid was defeated there. Whose revenge he wants to take out in the flower garden today. In this way, Cupid did not get success on the first day. This means, he was wearing celibacy fast with Muni. Now is the chance. Therefore
मानहुॅ मदन दुंदुभी दीन्ही।
मनसा बिस्व बिजय कहॅ कीन्हीं।।
इसमें कामदेव का नगाड़ा बजाना विश्व विजेता होने का आधार है। क्योंकि आज सीताजी की सहायता से वह तो बिना दुंदुभी दिए ही त्रिलोक बिजयी है। यहां आगे पुष्पवाटिका में कामदेव की ही विजय होती है। जैसा अगली अर्धालियो में कहा गया है। यथा In this, playing the drum of Cupid is the basis of being a world champion. Because today with the help of Sitaji, she has conquered Trilok without giving Dundubhi. Here, in the Pushpavatika, it is only Cupid who wins. As stated in the next half. as
अस कहि फिरि चितये तेहि ओरा।
सिय मुख ससि भए नयन चकोरा।।
भये बिलोचन चारु अचंचल।
मनहुॅ सकुचि निमि तजे दिगंचल।।
श्रीरामजी रघुवीर हैं। आज यहां कामदेव और श्रीरघुवीर का विश्व-विजय के लिए युद्ध आरंभ हो गया है। प्रारंभ में तो ऐसा लगेगा कि कामदेव की ही विजय हो गई है। यह विजय चंद्रोदय के वर्णन तक चलेगी। यथा Shriramji is Raghuveer. Today, the war between Kamdev and Shri Raghuveer for world-conquest has started here. In the beginning it would appear that Cupid has won. This victory will last till the description of moonrise. as
प्राची दिसि ससि उयउ सुहावा।
सिय मुख सरिस देखि सुख पावा।।
और श्रीरामजी ने सीताजी के मुख की शोभा चंद्रमा की शोभा से श्रेष्ठ बतलाई। यथा
And Shriramji told the beauty of Sitaji’s face to be better than the beauty of the moon. as
बहुरि बिचार कीन्ह मन माहीं।
सीय बदन सम हिमकर नाहीं।।
लेकिन आगे धनुष यज्ञ की संपूर्णता के पश्चात श्रीराम रघुवीर की ही विजय हुई है। यथा- But after the completion of Dhanush Yagya, only Shri Ram Raghuveer has won. as-
कर सरोज जयमाल सुहाई।
विस्व बिजय सोभा जेहि छाई।।
बिस्व बिजय जसु जानकि पाई।
आए भवन ब्याह सब भाई।।