*हिंदू पंचांग के अनुसार: महाशिवरात्रि की शुरुआत 18 फरवरी को रात 08 बजकर 03 मिनट पर होगी और इसका समापन रविवार 19 फरवरी को शाम 04 बजकर 19 मिनट पर होगा। चूंकि महाशिवरात्रि की पूजा निशिता काल में की जाती है। इसलिए यह त्योहार 18 फरवरी को ही मनाना उचित होगा। इस दिन निशिता काल का समय रात 11 बजकर 52 मिनट से लेकर 12 बजकर 42 मिनट तक रहेगा। शिवरात्रि में जो रात का समय होता है उसमें चार पहर की पूजा होती है।
पंचांग के हिसाब से फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चौदस है। ये दिन शुभ संयोग वाला है। जिससे शिव पूजा का महत्व और बढ़ गया है। दरअसल, 700 साल बाद ऐसा मौका आया है जब महाशिवरात्रि पर पंच महायोग बन रहा है। इसलिए आज पूजा-पाठ के अलावा खरीदी और नए कामों की शुरुआत भी शुभ रहेगी।
*शिवरात्रि पर केदार, शंख, शश, वरिष्ठ और सर्वार्थसिद्धि योग* मिलकर पंच महायोग बना रहे हैं। पिछले 700 सालों में ऐसा संयोग नहीं बना। इस दिन तेरस और चौदस दोनों तिथियां है। ग्रंथों में ऐसे संयोग को शिव पूजा के लिए बहुत खास बताया है। इन ग्रह योग में नई शुरुआत और खरीदारी से फायदा मिलेगा।
शिव पूजा मंत्र
ओम नम: शिवाय।
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नमः शिवाय।।
शिव पूजा के महत्वपूर्ण नियम
1. बिना कटा-फटा बेलपत्र चिकने तरफ से शिवलिंग पर चढ़ाते हैं।
2. हल्दी, सिंदूर, नारियल, कुमकुम, शंख, तुलसी के पत्ते, केवड़ा फूल आदि शिव पूजा में वर्जित हैं।
3- शिवलिंग की आधी परिक्रमा करते हैं।
4. शिवलिंग पर धीरे धीरे जल की धारा गिराते हैं, तीव्र गति से जल नहीं चढ़ाना चाहिए.
5. पूजा के समय महाशिवरात्रि व्रत कथा का पाठ जरूर करें।
महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखने और शिव पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और मोक्ष मिलता है। जानते हैं महाशिवरात्रि के शुभ मुहूर्त, मंत्र, नियम, कथा, पारण, व्रत और पूजा विधि के बारे में।
महाशिवरात्रि पर विधिपूर्वक व्रत और पूजा करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।
महाशिवरात्रि पर विधिपूर्वक व्रत और पूजा करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं । फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि मनाई जाती है।
महाशिवरात्रि के दिन पांच शुभ योग केदार, वरिष्ठ, शश, शंख और सर्वार्थ सिद्धि योग हैं।
हल्दी, सिंदूर, नारियल, कुमकुम, शंख, तुलसी के पत्ते, केवड़ा फूल आदि शिव पूजा में वर्जित हैं.
महाशिवरात्रि का पावन पर्व आज 18 फरवरी को है। हर साल फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। आज सुबह से ही शिवालयों में भक्त भोले शिव शंकर की पूजा अर्चना कर रहे हैं। आज पूरे दिन और रात शिव परिवार की विधिपूर्वक पूजा अर्चना चलेगी। महाशिवरात्रि के दिन पांच शुभ योग केदार, वरिष्ठ, शश, शंख और सर्वार्थ सिद्धि योग हैं. आज महाशिवरात्रि के साथ ही शनि प्रदोष व्रत भी है। महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखने और शिव पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और मोक्ष मिलता है। अयोध्या के ज्योतिषाचार्य व राम जन्मभूमि मंदिर के पुजारी से जानते हैं- महाशिवरात्रि के शुभ मुहूर्त, मंत्र, नियम, कथा, पारण, व्रत और पूजा विधि के बारे में।
*महाशिवरात्रि 2023 शिव पूजा मुहूर्त*
आज सुबह 08:22 बजे से लेकर सुबह 09:46 बजे तकदोपहर 12:35 बजे से लेकर शाम 04:49 बजे तकशाम 06:13 बजे से लेकर रात 09:24 बजे तक निशिता पूजा मुहूर्त: 12:09 बजे से देर रात 01:00 बजे तक
*शिव पूजा मंत्र*
ओम नम: शिवाय।
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय।नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नमः शिवाय।।
*शिव पूजा के महत्वपूर्ण नियम*
1. बिना कटा-फटा बेलपत्र चिकने तरफ से शिवलिंग पर चढ़ाते हैं।
2. हल्दी, सिंदूर, नारियल, कुमकुम, शंख, तुलसी के पत्ते, केवड़ा फूल आदि शिव पूजा में वर्जित हैं।
3. शिवलिंग की आधी परिक्रमा करते हैं।
4. शिवलिंग पर धीरे – धीरे जल की धारा गिराते हैं, तीव्र गति से जल नहीं चढ़ाना चाहिए।
5. पूजा के समय महाशिवरात्रि व्रत कथा का पाठ जरूर करें।
*महाशिवरात्रि व्रत और पूजा विधि*
1. आज प्रात: स्नान करने के बाद महाशिवरात्रि व्रत और शिव पूजा का संकल्प करें. फिर सुबह शुभ मुहूर्त में शिव जी की पूजा करें.
2. सर्वप्रथम भगवान शिव को गंगाजल मिले पानी से अभिषेक करें. उसमें अक्षत् भी डाल दें. उसके बाद शिवजी को चंदन, भस्म, अक्षत्, बेलपत्र, गाय का दूध, शहद, भांग, धतूरा, शमी के पत्ते, दूध से बनी मिठाई, फूल, माला, जनेऊ, मौली, वस्त्र आदि अर्पित करें।
3. इस दौरान आप शिव मंत्र का उच्चारण करते रहें। इसके बाद शिव चालीसा और महाशिवरात्रि व्रत कथा का पाठ करें। उसके बाद घी के दीपक से शिव जी की आरती करें.।
4. क्षमा प्रार्थना के बाद शिव जी से मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करें। फिर अपनी क्षमता के अनुसार दान और दक्षिणा दें। रात्रि के समय में जागरण करें।
5. अगले दिन 19 फरवरी को स्नान के बाद पूजा पाठ करें और शुभ समय में पारण करके महाशिवरात्रि व्रत को पूरा करें।
*महाशिवरात्रि व्रत कथा*
शिव पुराण की कथा के अनुसार, एक गांव में एक शिकारी था, जो पशुओं का शिकार करके अपना घर परिवार चलाता था। वह गांव के ही एक साहूकार का कर्जदार था। वह काफी प्रयासों के बाद भी कर्ज से मुक्त नहीं हो पा रहा था। एक दिन क्रोधित होकर साहूकार ने उसे शिवमठ में बंदी बना लिया। उस दिन शिवरात्रि थी।
शिकारी उस दिन शिवरात्रि की कथा को सुना। शाम के समय में उसे साहूकार के सामने पेश किया गया तो शिकारी ने वचन दिया कि अगले दिन वह सभी कर्ज को चुकाकर मुक्त हो जाएगा। तब उसे साहूकार ने छोड़ दिया। शिकारी वहां से जंगल में गया और शिकार की तलाश करने लगा। वह एक तालाब के किनारे पहुंचा। वहां पर वह एक बेल के पेड़ पर अपना ठिकाना बनाने लगा। उस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था, जो बेलपत्रों से ढंका हुआ था। उसे इस बात की जानकारी न थी।
बेल वृक्ष की टहनियों को तोड़कर वह नीचे फेंकता गया और बेलपत्र उस शिवलिंग पर गिरते गए। वह भूख – प्यास से व्याकुल था। अनजाने में उससे शिव पूजा हो गई। दोपहर तक वह भूखा ही रहा। रात में एक गर्भवती हिरणी तालाब में पानी पीने आई। तभी शिकारी उसे मारने के लिए धनुष-बाण तैयार कर लिया। उस हिरणी ने कहा कि वह बच्चे को जन्म देने वाली है, तुम एक साथ दो हत्या न करो। बच्चे को जन्म देकर तुम्हारे पास आ जाऊंगी, तब तुम शिकार कर लेना। यह सुनकर शिकारी ने उसे जाने दिया।
कुछ देर बाद एक और हिरणी आई तो शिकारी उसका शिकार करने को तैयार हो गया तभी उस हिरणी ने कहा कि वह अभी ऋतु से मुक्त हुई है, वह अपने पति की तलाश कर रही है क्योंकि वह काम के वशीभूत हैं। वह जल्द ही पति से मिलने के बाद शिकार के लिए उपस्थित हो जाएगी। शिकारी ने उसे भी छोड़ दिया।
देर रात एक हिरणी अपने बच्चों के साथ उस तालाब के पास आई। शिकारी एक साथ कई शिकार देखकर खुश हो गया। वह शिकार करने के लिए तैयार हो गया, तभी उस हिरणी ने कहा कि वे अपने बच्चों के साथ इनके पिता की तलाश कर रही हैं, जैसे ही वो मिल जाएंगे तो वह शिकार के लिए आ जाएगी। इस बार शिकारी उन्हें छोड़ना नहीं चाहता था, लेकिन उस हिरणी ने शिकारी को उसके बच्चो का हवाला दिया तो उसने उसे जाने दिया। अब शिकारी बेल वृक्ष पर बैठकर बेलपत्र तोड़कर नीचे फेंकते जा रहा था। अब सुबह होने ही वाली थी। तभी वहां एक हिरण आया। शिकारी उसे मारने के लिए तैयार था, लेकिन हिरण ने कहा कि इससे पहले तीन हिरणी और उनके बच्चों को तुमने मारा है, तो उसे भी मार दो क्योंकि उनका वियोग सहन नहीं होगा। यदि उनको जीवन दान दिया है तो उसे भी छोड़ दो, परिवार से मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा। रातभर उपवास, रात्रि जागरण और अनजाने में बेलपत्र से शिवलिंग की पूजा के प्रभाव से शिकारी दयालु हो गया था। उसने हिरण को भी जाने दिया। उसके मन में भक्ति की भावना प्रकट हो गई और वह पुराने कर्मों को सोचकर पश्चाताप करने लगा। तभी उसने देखा कि हिरण का पूरा परिवार शिकार के लिए उसके पास आ गया। यह देखकर वह और करुणामय हो गया और रोने लगा। उस शिकारी ने हिरण परिवार को जीवन दान दे दिया और स्वयं हिंसा को छोड़कर दया के मार्ग पर चलने लगा। शिव कृपा से वह शिकारी तथा हिरण का परिवार मोक्ष को प्राप्त हुआ।
*शिव चालीसा:*
।।दोहा।।
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥1॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥2॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥3॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥4॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥5॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥6॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥7॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥8॥
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥9॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥10॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
*शिव आरती*
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥
*महाशिवरात्रि से संबंधित सवाल – जवाब:*
*सवाल: शिवरात्रि क्यों मनाते हैं?*
जवाब: शिव महापुराण के मुताबिक फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चौदस को आधी रात में शिवजी लिंग रूप में प्रकट हुए थे। तब भगवान विष्णु और ब्रह्माजी ने पहली बार शिवलिंग की पूजा की। इसलिए शिवरात्रि मनाते हैं।
*सवाल: तो फिर, शिव-पार्वती विवाह कब हुआ था?*
जवाब: शिव महापुराण की रूद्रसंहिता में लिखा है, शिव-पार्वती विवाह अगहन महीने के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि पर हुआ था।
*सवाल: किस समय पूजा करना शुभ रहेगा?*
जवाब: महाशिवरात्रि पर पूरे दिन-रात पूजा कर सकते हैं। स्कंद, शिव और लिंग पुराण का कहना है कि इस त्योहार के नाम के मुताबिक, रात में शिवलिंग का अभिषेक करना बहुत ही शुभ माना जाता है।
*सवाल: पूजा की विधि क्या होनी चाहिए?*
जवाब: शिवरात्रि पर पूरे विधि-विधान से शिव पूजा करनी चाहिए। अगर समय न मिले या मंदिर न जा पाएं तो घर पर ही कुछ जरूरी चीजों के साथ *ऊँ नम: शिवाय मंत्र* का जाप करते हुए शिव पूजा कर सकते हैं। ये महापूजा बहुत फल देती है।
*सवाल: शिव पूजा में किन बातों का ध्यान रखें?*
जवाब: शिव पूजा में इन 4 बातों का खास ख्याल रखें-
1- पूजा करते वक्त मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ हो।
*कुंद, केतकी और कैंथ के फूल न चढ़ाएं।*
2- शिवलिंग पर दूध और जल चढ़ाने के बाद उसे न पिएं, सिर आंखों पर लगा सकते हैं।
3-पूजा के बाद शिवलिंग की आधी परिक्रमा ही करें।
*सवाल: शिवरात्रि का व्रत कैसे करें?*
1- सूर्योदय से पहले उठें।
2-पानी में गंगाजल और काले तिल मिलाकर नहाएं।
3-व्रत और शिव पूजा का संकल्प लें।
4- व्रत-उपवास में अन्न नहीं खाएं। पुराणों में जिक्र है कि पूरे दिन पानी भी नहीं पीना चाहिए। लेकिन इतना कठिन व्रत न कर सकें तो फल, दूध और पानी ले सकते हैं।
5- सुबह-शाम नहाने के बाद शिव मंदिर दर्शन के लिए जाएं।
*उपर्युक्त सभी प्रमुख प्रश्नों का जवाब दिए-*
1- परम पूज्य देवरहवा बालक बाबा महाराज।
शिष्य – श्री मार्कण्डेय सिंह ‘मुन्ना’
2- आचार्य रविकांत जी , शिष्य
आचार्य सतेन्द्र दास जी महाराज
प्रधान अर्चक (श्री राम जन्मभूमि मंदिर) अयोध्या।
3. प्रो. रामनारायण द्विवेदी, महामंत्री, काशी विद्वत परिषद।
4. डॉ. गणेश मिश्र, ज्योतिषाचार्य, संपूर्णानंद विश्वविद्यालय, बनारस।
5. पं. भीमाशंकर लिंग, रावल, केदारनाथ मंदिर, उत्तराखंड।
6. पं. श्रीकांत मिश्र, प्रधान पुजारी, विश्वनाथ मंदिर, बनारस।
7. पं. विकास शर्मा, पुजारी, महाकाल मंदिर, उज्जैन।
*संकलनकर्ता एवं लेखक:*
डॉ• परमानंद शुक्ल ‘आचार्य’
*संदर्भ* –
1- महाशिवपुराण
2- वैदिक पंचांग
3- हिंदू पंचांग
4- रामायण
6- स्कंद पुराण
7- श्रीमद्भागवत गीता
5- संकलन मीडिया- आज तक , एन •डी •टी•बी , हिंदुस्तान, दैनिक जागरण, अमर उजाला समाचार पत्र।