पाठ-1 साखी

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CBSE कक्षा 10 हिंदी ‘ब’ स्पर्श (काव्य खंड)
पाठ – 1 साखी
महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर


काव्यांश के विषय-बोध और सराहना पर आधारित प्रश्नोत्तर
निम्नलिखित पंक्तियों पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

  1. ऐसी बाँणी बोलिये, मन का आप खोइ।
    अपना तन सीतल करै, औरन कौं सुख होइ।।

    1. साखी में कौन-सा छंद प्रयुक्त हुआ है?
      उत्तर- प्रश्नोक्त साखी में दोहा छंद प्रयुक्त हुआ है।
    2. तन सीतल से क्या अभिप्राय है?
      उत्तर- तन सीतल का अभिप्राय अलौकिक आनंद का अनुभव करने से है।
    3. मधुरवाणी बोलने का क्या लाभ है ?
      उत्तर- मधुरवाणी बोलने से अहंकार मिटता है तथा अलौकिक आनंद की प्राप्ति होती है।
    4. ‘मन का आपा खोना’ से क्या तात्पर्य है?
      उत्तर- मन का आपा खोने का तात्पर्य है अपने मन से अहंकार को त्याग देना।
    5. ‘आपा’ का शाब्दिक अर्थ क्या होगा?
      उत्तर- ‘आपा’ का शाब्दिक अर्थ अहंकार/गर्व होता है।

  2. कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग ढूँढ़ै बन माँहि।
    ऐसैं घटि घटि राँम है, दुनिया देखै नाँहि।।

    1. कस्तूरी कहाँ बस्ती है ?
      उत्तर- कस्तुरी का निवास स्थान हिरण की नाभि है।
    2. हिरण कस्तुरी को कहाँ ढूँढ़ता फिरता है।
      उत्तर- हिरण कस्तुरी को जंगलों में ढूँढ़ता फिरता है।
    3. संसार किस तथ्य से अनजान है ?
      उत्तर- संसार ईश्वर की स्वयं में उपस्थिति से अनभिज्ञ है वो उसे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों में ढूँढ़ता रहता है।
    4. ‘कुंडली’ का क्या अर्थ है ?
      उत्तर- कुंडली का शाब्दिक अर्थ नाभि होता है।
    5. ‘ऐसैं घटि-घटि राँम है’ का क्या अर्थ है ?
      उत्तर- प्रश्नोक्त पंक्ति का अर्थ है कि कण-कण में राम अर्थात् ईश्वर विराजमान हैं।

  3. जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहि।
    सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि।।

    1. उपर्यक्त साखी से क्या संदेश मिलता है ? स्पष्ट कीजिए
      उत्तर- उपर्युक्त साखी से हमें अपने मन से अहंकार दूर करने का संदेश मिलता है। साखी में कहा गया है कि जब तक साधक के मन में अहंकार था तब तक उसके मन में ईश्वर नहीं था और जब साधक ने अपने मन से अहंकार भाव को निकाल फेंका तब ईश्वर कि सहज ही प्राप्ति हो गई। कवि का कहना है कि ईश्वर और अहं साथ-साथ नहीं रह सकते।
    2. ईश्वर प्राप्ति के लिए क्या आवश्यक है ?
      उत्तर- ईश्वर प्राप्ति के लिए अहं भाव का त्याग अति आवश्यक है।
    3. दीपक किसका प्रतीक है ?
      उत्तर- प्रश्नोक्त पंक्ति में दीपक ज्ञान का प्रतीक है।
    4. ‘दीपक देख्या माँहि’ का क्या आशय है ?
      उत्तर- प्रश्नोक्त पंक्ति का आशय यह है कि ज्ञान रूपी दीपक जलते ही मनुष्य का अंधकार रूपी अज्ञान नष्ट हो जाता है।
    5. ‘माँहि’ का क्या अर्थ है ?
      उत्तर- ‘माँहि’ का शाब्दिक अर्थ अंतर्मन है।

  4. सुखिया सब संसार है, खायै अरू सोवै।
    दुखिया दस कबीर है, जागै अरू रोवै।।

    1. ‘सुखिया सब संसार है’ में कौन-सा अलंकार है ?
      उत्तर- प्रश्नोक्त पंक्ति में ‘स’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।
    2. कबीर के दुःख का कारण क्या है ?
      उत्तर- कबीर के दुःख का कारण प्रभु को नहीं प्राप्त करना है। वे कहते हैं कि सुखी व्यक्ति वह है जो सिर्फ़ सांसारिक सुखों में डूबा रहता है तथा दुखी वह है तो संसार कि नश्वरता को को देखकर रोता रहता है। कबीर इसी नश्वरता को देखकर दुखी है।
    3. संसार खाने और सोने में मस्त क्यों है ?
      उत्तर- संसार के लगभग सभी लोग सांसारिक सुखों को ही सुख मानते हैं,
    4. उपर्युक साखी का प्रतिपाद्य क्या है ?
  • उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियों का प्रतिपाद्य यह है कि प्रभु के प्रति जाग्रत मनुष्य उनके वियोग में तड़पता है जबकि सांसारिक लोग मौज करते हैं
  • अर्थबोध एवं सराहना पर आधारित पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
  • प्रश्न 1- मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने मन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है? 
  • उत्तर मनुष्य को हमेशा मीठे बोल बोलने चाहिए। मधुर वचन बोलने से उसे सुनने वाला आनंद का अनुभव करता है क्योंकि जब मीठी वाणी हमारे कानों में पहुँचती है तो उसका असर हमारे हृदय पर होता है। किसी के द्वारा बोले गए कटु वचन तो तीर की भांति हृदय में चुभने वाले होते हैं। मधुर वचन से हम दूसरों को ही सुख प्रदान नहीं करते अपितु हमें भी शीतलता का अनुभव होता है। जब मधुर वचनों का प्रयोग करते हैं तो हमारा अहंकार नष्ट हो जाता है। अहंकार के नष्ट होने पर हमें शीतलता प्राप्त होती है।
  • प्रश्न-2 दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
  • उत्तर- दीपक के प्रकाश से अँधेरा समाप्त हो जाता है, उसी प्रकार प्रभु-प्रेम का प्रकाश होने से मन के सारे भ्रम, संदेह और प्रश्न समाप्त हो जाते हैं। ज्ञान रूपी दीपक के जलते ही मनुष्य का अज्ञान रूपी अँधकार उसके प्रकाश से नष्ट हो जाता है। ज्ञान के दीपक के जलने पर मनुष्य ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग पर चल पड़ता है।
  • प्रश्न 3 संसार  में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
  • उत्तर- संसार में सुखी व्यक्ति वह है जो केवल सांसारिक सुखों में डूबा रहता है और जिसके जीवन का उद्देश्य केवल खाना, पीना और सोना है वही व्यक्ति सुखी है। इसके विपरीत जो व्यक्ति संसार कि नश्वरता को देखकर रोता रहता है, वह दुखी है। ‘सोना’ सज्ञान में पड़े रहने तथा ‘जागना’ ज्ञान प्राप्त करने की दशा के प्रतीक हैं। इन शब्दों का प्रयोग यहाँ प्रतीकात्मक रूप में हुआ है।सोने वाला व्यक्ति वास्तव में सुखी नहीं है क्योंकि वह अज्ञानी है और सुख का सच्चा मतलब नहीं समझता। ‘जागा’ व्यक्ति ईश्वर संबंधी रहस्य को जानता है। वह संसार कि दशा देखकर दुखी होता है। क्योंकि संसार अज्ञान से निरंतर नष्ट होता जा रहा है।
  • प्रश्न 4 स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है? उत्तर- अपने स्वभाव को निर्मल बनाने के लिए कबीर ने यह बताया है कि अपने निंदक को अपने पास रखिए। अपनी निंदा करने वाले को तो अपने ही घर में अपने आसपास रखना चाहिए। ऐसा करने से हमारा स्वभाव अपने आप ही निर्मल हो जाएगा क्योंकि निंदा करने वाला व्यक्ति हमारे गलत कार्यों की निंदा करेगा तो हम अपने आप को सुधारने का प्रयास करेंगे
  •  प्रश्न 5‘पोथी पढ़ि- पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोई।’ भाव स्पष्ट कीजिए। उत्तर- इस पंक्ति का भाव यह है कि ईश्वर की प्राप्ति किताबी ज्ञान या पोथियाँ पढ़ने से नहीं हो सकती। पुस्तकें पढ़-पढ़कर यह संसार नष्ट हो गया, किंतु किसी को सच्चा ज्ञान नहीं मिल सका अर्थात् ईश्वर नहीं मिल सका। जो व्यक्ति ईश्वर-प्रेम के केवल एक अक्षर को ही जान लेता है, वही सच्चा विद्वान है। धार्मिक ग्रथों को पढ़कर स्वयं को विद्वान और ज्ञानी कहने वाले सदा रोते रहे हैं और मिटते रहे हैं किंतु ईश्वर प्रेम के एक अक्षर को समझने वाला व्यक्ति सच्चा विद्वान होता है।
  • प्रश्न-6 कबीर की सखियों से आप क्या समझते हैं?
  • उत्तर- ‘साखी’ शब्द ‘साक्षी’ शब्द का ही तद्भव रूप है। साक्षी साक्ष्य से बना है जिसका अर्थ होता हगे – प्रत्यक्ष ज्ञान गुरु शिष्य को प्रदान करता है। संत संप्रदाय में अनुभव ज्ञान की ही महत्ता है, शास्त्रीय ज्ञान की नहीं। कबीर का अनुभव क्षेत्र विस्तृत था। कबीर जगह-जगह भ्रमण कर प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करते थे। अतः उनके द्वारा रचित साखियों में अवधी, राजस्थानी, भोजपुरी और पंजाबी भाषाओं के शब्दों का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है। इसी कारण उनकी भाषा को ‘पंचमेल खिचड़ी’ कहा जाता है। कबीर कि भाषा को सधुक्कड़ी भी कहा जाता है। ‘साखी’ वस्तुतः दोहा छंद ही है जिसका लक्षण है 13 और 11 के विश्राम से 24 मात्रा और अंत में जगण। प्रस्तुत पाठ की साखियाँ प्रमाण हैं कि सत्य देता हुआ ही गुरु शिष्य को जीवन के तत्त्वज्ञान की शिक्षा देता है। यह शिक्षा जितनी प्रभावपूर्ण होती है उतनी ही यद् रह जाने योग्य भी।
  • प्रश्न-7 कबीर ने साखियों के माध्यम से हमें कौन-कौन से संदेश दिए हैं?उत्तर- कबीरदास के अनुसार हमें ऐसे मधुर वचनों का प्रयोग करना चाहिए जससे दूसरों को भी सुख का अनुभव हो। उनका मानना है कि ईश्वर प्रत्येक हृदय में विद्यमान है, किंतु मनुष्य कस्तुरी के मृग की तरह उसे इधर-उधर ढूँढ़ता फिरता है। ईश्वर को प्राप्त करने के लिए अहंकार को नष्ट करना आवश्यक है और मन को पूर्ण एकाग्र करके ही ईश्वर को पाया जा सकता है। ईश्वर को प्राप्त करने के लिए वे सभी प्रकार की वेशभूषा को अपनाने के लिए तैयार हैं। कबीरदास जी कहते हैं कि सांसारिक लोग विषय-वासना में डूबे रहते हैं। वे खाने-पीने और सोने में सुख अनुभव करतेहैं किंतु ज्ञानी व्यक्ति जीवन की नश्वरता को देखकर दुखी रहता है। ईश्वर के विरह में तड़पने वाला व्यक्ति अत्यंत कष्टमय जीवन व्यतीत करता है। उनका मानना है कि नुष्य को अपने आलोचकों को भी अपने आस-पास ही रखना चाहिए। क्योंकि निंदा करने वाले व्यक्ति के सभी दोषों को दूर कर देते हैं। उनके अनुसार ग्रंथो को पढ़कर कोई व्यक्ति विद्वान नहीं हो सकता है। जो व्यक्ति ईश्वर प्रेम के मार्ग पर चलता है, वही विद्वान होता है। ईश्वर प्रेम के प्रकाशित होने पर एक विचित्र-सा प्रकाश हो जाता है। उसके बाद तो मनुष्य की वाणी से भी सुगंध आने लगती है

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